nature of management in hindi
Nature of Management class 12 in hindi – प्रबंध की प्रकृति को विज्ञानं और कला के रूप में बताया गया है, प्रबंध की प्रकृति में मानना है की प्रबंध कला है या फिर विज्ञान। हम जानेगें की प्रबंध विज्ञान है या फिर कला इसके लिए अलग – अलग विशेषज्ञ से अपने मत दिए है। आगे पढ़े।
Management is science or art explain in hindi
Management is a Science explain in Hindi
विज्ञान एवं कला ( Science & Art ) दोनों ही है सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि किसी विषय की जानकारी प्राप्त करना विज्ञान है और प्राप्त जानकारी को प्रयोग में लाना कला उदाहरण के लिए , एक व्यक्ति द्वारा इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना विज्ञान है तथा पढ़ाई के बाद इंजीनियर के रूप में काम करना कला । इसके बारे में हम और अधिक विस्तार से जानते है , आगे पढ़े –
प्रबन्ध : विज्ञान अथवा कला के रूप में
प्रबंध एक विज्ञान एवं कला दोनों है इस कथन को समझाइए
( Management : ‘ A Science ‘ Or ‘ An Art ’ ) प्रबन्ध की प्रकृति के संबंध में एक विवाद यह है कि ‘ प्रबन्ध विज्ञान है अथवा कला ‘ । कुछ प्रबन्ध विशेषज्ञ इसे केवल विज्ञान : मानते हैं तो कुछ इसे कला की श्रेणी में रखते हैं । यह विवाद बहुत पुराना एवं भ्रमपूर्ण है । प्रबन्ध की प्रकृति के इस तथ्य को समझने के लिए सर्वप्रथम विज्ञान एवं कला का अर्थ स्पष्ट कर लेना आवश्यक है । विज्ञान एवं कला का अर्थ एवं विशेषताएं तथा उनकी प्रबन्ध में विद्यमानता निम्न वर्णन से स्पष्ट होती है –
■ प्रबन्ध विज्ञान के रूप में ( Management as a Science )
प्रबन्ध को विज्ञान स्वीकार करने या न करने से पहले विज्ञान का अर्थ स्पष्ट करना जरूरी है ।
● विज्ञान का अर्थ ( Meaning of Science )
विज्ञान वह क्रमबद्ध ज्ञान समूह है जो मनुष्य द्वारा अवलोकन ( Observation ) एवं प्रयोगों ( Experiments ) के आधार पर प्राप्त किया गया है और जिसको प्रमाणित करना ( Verification ) सम्भव है । कला और विज्ञान में मुख्य अन्तर यह है कि कला के अन्तर्गत यह जाना जाता है कि लागू कैसे ( How ) किया जाए अर्थात् पूर्व स्थापित सिद्धान्तों को वास्तविक रूप देने की पद्धति क्या हो , जबकि विज्ञान में यह जाना जाता है कि ऐसा क्यों ( why ) किया जा रहा है अर्थात् सिद्धान्तों को बनाने के पीछे क्या रहस्य छिपा हुआ है । विज्ञान की मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं
( 1 ) केन्ज के अनुसार , “ विज्ञान वह क्रमबद्ध ज्ञान – समूह है , जो कारण और परिणाम के बीच में संबंध स्थापित करता है । ” ( Science is a systematised body of knowledge which establishes relationship between cause and effect . – Keynes )
( 2 ) जी ० आर ० टेरी के शब्दों में , ” विज्ञान किसी भी तथ्य , विषय या अध्ययन के उद्देश्य का सामान्य सत्यों की जानकारी के सन्दर्भ में संग्रहीत एवं स्वीकृत क्रमबद्ध ज्ञान है । ” ( Science is a body of systematised knowledge accumulated and accepted with reference to the understanding of general truths , concerning a particular phenomenon , subject or object of study.- G.R. Terry )
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर विज्ञान की निम्नलिखित पांच विशेषताएं स्पष्ट होती हैं :
- ( 1 ) व्यवस्थित ज्ञान – समूह ( Systematised Body of Knowledge ) ।
- ( 2 ) तथ्यों के संग्रह , विश्लेषण एवं प्रयोगों पर आधारित ( Based on Collection of Facts , Analysis and Experiments )
- ( 3 ) सार्वभौमिक उपयोग ( Universal Application ) ।
- ( 4 ) कारण एवं परिणाम संबंध ( Cause and Effect Relationship ) ।
- ( 5 ) परिणामों की वैधता की जांच एवं पूर्वानुमान सम्भव ( Verification of Validity and Prediction of Results Possible ) !
अब यह देखने के लिए , कि क्या प्रबन्ध को विज्ञान मान लिया जाए , विज्ञान की विशेषताओं को प्रबन्ध पर लागू करके देखने की आवश्यकता है । इसके लिए निम्न क्रियाएं को पूरा किया जाता है।
प्रबंध विज्ञानं की विशेषताएं
( 1 ) व्यवस्थित ज्ञान – समूह ( Systematised Body of Knowledge ) : विज्ञान के लिए क्रमबद्ध अथवा व्यवस्थित ज्ञान – समूह का होना आवश्यक है । प्रबन्ध भी एक व्यवस्थित ज्ञान – समूह है , क्योंकि इसकी पहचान प्रबन्ध विशेषज्ञों के कई वर्षों तक किए गए शोधकार्यों एवं प्रयोगों के बाद स्थापित हुई है ।
( 2 ) तथ्यों के संग्रह , विश्लेषण एवं प्रयोगों पर आधारित ( Based on Collection of Facts , Analysis and Experiments ) : विज्ञान की इस विशेषता को प्रबन्ध पर लागू करने पर पता चलता है कि इसका विकास अनेक वर्षों तक तथ्यों के संग्रह , विश्लेषण एवं प्रयोग किए जाने के बाद हुआ है । दूसरे शब्दों में , प्रबन्धशास्त्र की प्राप्ति सिद्धान्तवादी ( Theorist ) एवं अन्य संबंधित लोगों के लगातार तथा उत्साहपूर्वक परिश्रम के बाद हुई है ।
( 3 ) सार्वभौमिक प्रयोग ( Universal Application ) : वैज्ञानिक सिद्धान्त सत्य पर आधारित होते हैं तथा उन्हें हर परिस्थिति में एवं हर समय लागू किया जा सकता है । अतः उनका सार्वभौमिक उपयोग सम्भव है । प्रबन्ध के क्षेत्र में भी , प्रबन्धकीय ज्ञान अथवा प्रबन्ध के सिद्धान्तों को सत्य पर आधारित माना जाता है और उन्हें भी सभी परिस्थितियों में व हर समय लागू किया जा सकता है । उदाहरण के लिए , आदेश की एकता का सिद्धान्त ( Principle of Unity of Command ) , जिसका अभिप्राय यह है कि हर है अधीनस्थ कर्मचारी को केवल एक ही अध्यक्ष से आदेश मिलना चाहिए , सभी जगह समान रूप से लागू होता है । यदि एक व्यक्ति को .. आदेश देने वाले एक से ज्यादा अध्यक्ष हो तो वह समझ नहीं पायेंगे कि किस अध्यक्ष के कार्य को प्राथमिकता दी जाए और अन्ततः उसकी कार्यकुशलता में कमी आ जायेगी । इसी प्रकार अनेक और सिद्धान्त भी समान रूप से लागू होते हैं ।
( 4 ) कारण एवं परिणाम संबंध ( Cause and Effect Relationship ) : वैज्ञानिक सिद्धान्त विभिन्न तत्त्वों के मध्य कारण एवं परिणाम का संबंध स्पष्ट करने वाले होते हैं । यही विशेषता जब प्रबन्ध पर लागू की जाती है तो पता चलता है कि प्रबन्ध के सिद्धान्त भी कारण एवं परिणाम में संबंध स्थापित करते हैं । उदाहरण के लिए , घटिया नियोजन एवं प्लांट व्यवस्था ( Poor परिणाम । इसी प्रकार कार्य विभाजन के सिद्धान्त के अनुसार कार्य का ठीक वितरण कारण है तथा कार्यकुशलता में वृद्धि परिणाम । इस Planning and Plant Layout ) के कारण उत्पादकता में कमी आती है । यहाँ नियोजन का घटियापन कारण है और उत्पादन में कमी प्रकार विज्ञान की यह विशेषता भी प्रबन्ध में पाई जाती है ।
( 5 ) परिणामों की वैधता की जांच एवं पूर्वानुमान सम्भव ( Verification of Validity and Prediction of Results Possible ) : केवल ज्ञान या तथ्यों को एकत्रित करना ही विज्ञान नहीं है । विज्ञान के लिए परिणामों की वैधता की जांच एवं पूर्वानुमान किया जाना आवश्यक है । प्रबन्ध के सिद्धान्तों की वैधता की जांच भी की जा सकती है और किसी विशेष सिद्धान्त को लागू करने पर प्राप्त होने वाले सम्भावित परिणामों का पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है । अतः प्रबन्ध के सिद्धान्त भी विज्ञान के सिद्धान्तों की भान्ति ही व्यवहार की कसौटी पर परखे और सिद्ध किये जा सकते हैं । उदाहरणार्थ , आदेश की एकता ( Unity of Command ) के सिद्धान्त को व्यावहारिकता में लाने पर पता चलता है कि वह अधीनस्थ जिसका केवल एक अध्यक्ष है अधिक कार्य कुशल होगा , उस अधीनस्थ के मुकाबले में जिसके एक से अधिक अध्यक्ष हैं । दूसरी ओर कारण एवं परिणाम में संबंध होने के कारण किसी सिद्धान्त को लागू करने पर प्राप्त होने वाले सम्भावित परिणामों को पहले से ही बताया जा सकता है । उदाहरणार्थ , आदेश की एकता के सिद्धान्त को लागू करने से पहले ही इससे प्राप्त होने वाले सम्भव परिणाम का बोध हो जाता है ।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रबन्ध में कला की भान्ति ही विज्ञान की भी सभी विशेषताएं विद्यमान हैं , किन्तु इसे भौतिक एवं रसायन शास्त्र ( Physics and Chemistry ) की श्रेणी का विज्ञान नहीं कहा जा सकता , क्योंकि प्रबन्ध विज्ञान का संबंध मनुष्यों से है और इनका व्यवहार लगातार परिवर्तित होता रहता है । अन्य शब्दों में , प्रबन्ध विज्ञान की विषय – वस्तु मानव है जो एक बुद्धिमान एवं संवेदनशील प्राणी है जिसका व्यवहार परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है । अतः उसके व्यवहार के संबंध में कोई स्थायी नियम भौतिक शास्त्र एवं रसायन शास्त्र की भान्ति नहीं बनाये जा सकते । यही कारण है कि प्रबन्ध विज्ञान भी सामाजिक विज्ञानों की भान्ति परिस्थितियों पर आधारित है तथा इसके परिणाम भौतिक एवं रसायन शास्त्र की भान्ति स्थायी नहीं हो सकते । अन्त में , प्रबन्ध विज्ञान को स्पष्टतः विज्ञान नहीं माना जा सकता , बल्कि इसे एक व्यावहारिक विज्ञान ( Applied Science ) कहना अधिक उचित होगा , जिसके सिद्धान्त समय , परिस्थितियों एवं मनुष्य की प्रकृति के अनुसार परिवर्तनशील होते हैं ।
निष्कर्ष ( Conclusion )
प्रबन्ध विज्ञान को पूर्णरूपेण विज्ञान ( Perfect Science ) नहीं माना जा सकता , बल्कि इसे एक व्यावहारिक विज्ञान ( Applied Science ) अथवा अयथार्थ विज्ञान ( Inexact Science ) कहना अधिक उचित होगा , जिसके सिद्धान्त समय , परिस्थितियों एवं मनुष्य की प्रकृति के अनुसार परिवर्तनशील होते हैं । अर्नेस्ट डेल ( Ernest Dale ) ने प्रबन्ध सरल विज्ञान ( Soft Science ) कहा है क्योंकि इसके नियम बहुत कठोर नहीं होते हैं ।
प्रबन्ध कला के रूप में ( Management as an Art )
कला का अर्थ ( Meaning of Art ) – कला का अभिप्राय ज्ञान के सैद्धांतिक प्रयोग से है ( Artrefers to the practical application of knowledge ) । उदाहरण के लिए , एक व्यक्ति इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद किसी कम्पनी में इंजीनियर के पद पर काम करता है । उसका इंजीनियर के रूप में काम करना कला है ।
किसी कार्य को सर्वोत्तम विधि से करना ही कला है । कला किसी कार्य को करने की विधि निश्चित करती है और यह बताती है कि उद्देश्यों को कैसे प्राप्त किया जा सकता है । कला एक व्यक्तिगत प्रक्रिया है क्योंकि प्रत्येक कलाकार का काम करने का अपना अलग तरीका होता है । वास्तव में कला एक रचनात्मक क्रिया है और इसकी सफलता का माप कलाकार द्वारा प्राप्त किए गए परिणामों से लगाया उदाहरण है । लगातार अभ्यास द्वारा कला को सुधारा जा सकता है । कला के बारे में कुछ विद्वानों द्वारा प्रस्तुत की गई परिभाषाएं निम्नलिखित हैं :
( 1 ) जी ० आर ० टेरी के अनुसार , ” चातुर्य के प्रयोग से इच्छित परिणाम प्राप्त करना ही कला है । ” ( Arti bringing about of a desired result through application of skill . – G.R . Terry )
( 2 ) टी . • एल • मैसी के शब्दों में , ” कोई भी किया जिसे कला की श्रेणी में रखा जा सके , में चातुर्य एवं ज्ञान के प्रयोग पर अधिक बल दिया जाता है और सोच – विचार कर किये गए प्रयत्न द्वारा परिणाम प्राप्त किया जाता ( In any activity that is classed as an art the emphasis is on applying skills and knowledge and accomplishing an end through deliberate effort . – T.L . Massie )
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि कला किसी कार्य को कुशलतापूर्वक करने के लिए या किसी उद्देश्य को प्रभावपूर्ण ढंग से प्राप्त करने के लिए व्यावहारिक निपुणता ( Practical Know – how ) तथा व्यक्तिगत कुशलता ( Personal Skill ) का प्रयोग करना है । इस दृष्टि से कला की पांच विशेषताएं हैं :
- ( i ) व्यक्तिगत कुशलता अथवा चातुर्य ( Personal Skill )
- ( ii ) व्यावहारिक ज्ञान ( Practical Knowledge )
- ( iii ) सार्थक परिणाम प्राप्ति धारणा ( Concrete Result – oriented Approach ) ;
- ( iv ) अभ्यास द्वारा विकास ( Development through Practice ) ; तथा
- ( v ) रचनात्मक शक्ति ( Creative Power ) प्रबन्ध में इन विशेषताओं को लागू करने से प्रबन्ध के कला होने या न होने के बारे में जानकारी प्राप्त होगी , जिसका वर्णन निम्न है :
प्रबंध कला की विशेषताएं
( 1 ) व्यक्तिगत कुशलता ( Personal Skill ) : इस सन्दर्भ में प्रबन्ध एक कला है क्योंकि संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने में आने वाली अनेक समस्याओं को प्रबन्धक अपने व्यक्तिगत चातुर्य द्वारा सुलझाता है । प्रबन्ध के कार्य के लिए सोच विचार , निर्णय एवं समझ की जरूरत पड़ती है और ये गुण विभिन्न प्रबन्धकों में अलग – अलग मात्रा में पाये जाते हैं । फलस्वरूप , उनकी दूसरे लोगों से काम लेने की शैली भी भिन्न – भिन्न होती हैं और जो शैली या कार्य – पद्धति एक प्रबन्धक के लिए लाभदायक सिद्ध होती है , वह दूसरे प्रबन्धक के लिए भी सही साबित होगी , यह जरूरी नहीं है । अतः कला की व्यक्तिगत कुशलता की विशेषता प्रबन्ध में पूर्ण रूप से विद्यमान है ।
( 2 ) व्यावहारिक ज्ञान ( Practical Knowledge ) : कला व्यावहारिक ज्ञान की ओर संकेत करती है तथा इसका संबंध ज्ञान को व्यवहार में लाने या लागू करने से है । प्रबन्ध भी एक व्यावहारिक ज्ञान है और व्यवसाय में प्रबन्धक का महत्त्व इस बात से जाना जाता है कि वह प्रबन्ध के सिद्धान्तों को कितनी कुशलता एवं प्रभावी ढंग से लागू करता है , न कि इस बात से कि उसे प्रबन्ध के सिद्धान्तों का कितना ज्ञान है । प्रबन्धकीय कार्य सम्पन्न करने के लिए प्रबन्धक में निर्णय – विवेक , व्यवहार कुशलता तथा नेतृत्व गुणों की आवश्यकता होती है तथा इन सभी गुणों में व्यावहारिक ज्ञान की झलक मिलती है । अतः प्रबन्ध में व्यावहारिक ज्ञान निहित है और इस आधार पर इसे कला कहा जा सकता है ।
( 3 ) सार्थक परिणाम प्राप्ति धारणा ( Concrete Result – oriented Approach ) : कला का आधार सार्थक परिणामों को प्राप्त करना होता है । इस सन्दर्भ में , प्रबन्ध भी एक सार्थक परिणाम प्राप्ति धारणा है , क्योंकि इसका संबंध उद्देश्यों को प्राप्त करने से है । प्रबन्ध में ये सार्थक परिणाम हैं- कम से कम विनियोग व श्रम से ज्यादा से ज्यादा लाभ प्राप्त करना , उत्पादन व विक्रय का लक्ष्य प्राप्त करना , पूंजी पर उचित प्रतिफल सुनिश्चित करना आदि । प्रबन्धक की सफलता का मापदण्ड भी यही है कि वह पूर्व – निर्धारित उद्देश्यों को कितनी ढंग से प्राप्त करता है । अतः परिणाम प्राप्ति के आधार पर भी प्रवन्ध को कला कहना अनुचित नहीं होता।
( 4 ) अभ्यास द्वारा विकास ( Development through Practice ) जिस प्रकार कला को लगातार अभ्यास से सुधा है , ठीक उसी प्रकार प्रबन्धकीय कुशलता भी अभ्यास एवं अनुभव द्वारा सुधरती है । हर प्रबन्धक के मन में यह अभिलाषा होती । अपने कार्य में पूर्णरूप से विशेषज्ञ बन जाये । वे अपनी इस इच्छा को वह लगातार अभ्यास द्वारा प्राप्त कर सकते हैं । एक पूर्ण रूप से विकसित प्रबन्धक न केवल संस्था को आसानी से परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार ढाल लेता है बल्कि वह बाहरी वातावरण को भी अपने अनुसार बदलने की क्षमता रखता है । इस प्रकार प्रबन्ध में कला की यह विशेषता भी विद्यमान होती है ।
( 5 ) रचनात्मक शक्ति ( Creative Power ) , कला में रचनात्मक कार्य करने की शक्ति निहित होती है । इसी प्रकार न्ध में भी प्रभावशाली रचनात्मक कला का गुण होता है , क्योंकि प्रबन्ध में भी दूसरे लोगों को अभिप्रेरित करके एवं उनकी क्रियाओ में समन्वय स्थापित करके कार्य को पूरा करवाया जाता है । अन्य शब्दों में , प्रबन्ध कोई व्यर्थ की क्रिया नहीं है बल्कि इसका उद्देश्य ऐसा वातावरण तैयार करना है जिसमें सभी लोग अपने अपने कार्यों को पूर्ण दक्षता के साथ पूरा कर सकें ।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि प्रबन्ध में कला की सभी विशेषताओं का समावेश है । इसी आधार पर प्रबन्ध को करा स्वीकार कर लिया गया है ।
निष्कर्ष ( Conclusion )
अत : हम कह सकते हैं कि प्रबन्ध कला भी है और विज्ञान भी प्रबन्ध विज्ञान के रूप में प्रबन्धकों को अपनी व्यावहारिक कुशलता के प्रयोग में आवश्यक मार्ग – दर्शन ( सिद्धान्तों के रूप में ) प्रदान करता है तथा प्रबन्ध , कला के सन्दर्भ में हर तरह की स्थिति का सामना करने में कार्य को सर्वोत्तम विधि के रूप में ) सहायक होता है । अतः प्रबन्ध को विज्ञान एवं कला दोनों ही मानना तर्क संगत है
प्रवन्धः एक पेशे के रूप में अथवा प्रबन्ध का पेशाकरण ( Management as a Profession or Professionalisation of Management )
● पेशे का अर्थ ( Meaning of Profession ) प्रबन्ध को प्रकृति के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि क्या प्रबन्ध एक पेशा है ? यह निश्चित करने के लिए । सर्वप्रथम पेशे का अर्थ एवं इसकी विशेषताओं का अध्ययन करना आवश्यक है ।
पेशा ? ( Profession ? ) . पेशे का अर्थ उस आर्थिक क्रिया से है जो एक विशेष ज्ञान एवं कुशलता प्राप्त व्यक्ति द्वारा समाज के विभिन्न वर्गों की निष्पक्ष सेवा करने के लिए की जाती है । ( Profession refers to that economic activity which is conducted by a person having some special knowledge and skill which is used impartially to serve different sections of the society)
पेशे का अर्थ समझने के लिए निम्नलिखित परिभाषाओं का अध्ययन सार्थक सिद्ध होगा :
(1 ) वेवस्टर शब्दकोश के अनुसार , ” पेशा वह व्यवसाय है जिसके अन्तर्गत एक व्यक्ति विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करके दूसरे व्यक्तियों को निर्देशन , मार्ग दर्शन या परामर्श देता है । ( Profession is that occupation in which one professes to have acquired specialised knowledge , which is used either in instructing , guiding or advising others . – Dictionary )
( 2 ) हॉज तथा जानसन के अनुसार , ” पेशा एक व्यवसाय है जिसके लिए कुछ विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता होती है जिसे उच्च स्तरीय समानता द्वारा समाज में एक संबंधित वर्ग की सेवार्थ प्रयुक्त किया जाता है । ” ( Profession is a vocation requiring some significant body of knowledge that is applied with high degree of consistency in service of some relevant segment of society . Hodge and Johnson )
( 3 ) प्रो . डाल्टन ई- मेक फारलैण्ड ( Prof. Dalton B. McParland ) ने पेशे की निम्नलिखित पांच विशेषताओं का उल्लेख किया है :
- ( i ) विशिष्ट ज्ञान एवं तकनीकी कौशल का होना ( The Existence of a body of Specialised Knowledge or Techniques )
- ( ii ) प्रशिक्षण एवं अनुभव प्राप्त करने की औपचारिक व्यवस्था ( Formalised Method of Acquiring Training and Experience ) ;
- ( iii ) पेशे का विकास करने के लिए एक प्रतिनिधि संस्था का होना ( The Establishment of Representative Organisation with Professionalism as its Goal )
- ( iv ) व्यवहार को नियन्त्रित करने के लिए आधार संहिता का होना ( The Formation of Ethical Codes for the Guidance of Conduct ) ; तथा
- ( v ) आर्थिक स्वार्थ के स्थान पर सेवा भावना को प्राथमिकता देना ( Due Regards for the Priority of Service over the Desire for Monetary Reward )
निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि पेशे के अंतर्गत एक व्यक्ति लम्बे प्रशिक्षण एवं अनुभव द्वारा प्राप्त व्यक्तिगत निपुणता का प्रयोग समाज के भिन्न – भिन्न वर्गों की सेवा में निष्पक्ष रूप से करता है ।
● क्या प्रवन्ध एक पेशा है ? ( Is Management a Profession ? )
पेशे का अर्थ समझने के बाद अब प्रश्न उठता है कि क्या प्रबन्ध को पेशे के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए अथवा नहीं 2 इस प्रश्न के उत्तर के लिए यह देखना होगा कि क्या पेशे वाली सभी विशेषताएं प्रबन्ध में है ? पेशे की विभिन्न विशेषताओं और उनके प्रबन्ध में विद्यमान होने के संबंध में निम्नलिखित विवेचन महत्त्वपूर्ण हैं :
( 1 ) विशिष्ट ज्ञान एवं तकनीकी कौशल ( Body of Specialised Knowledge and Technique ) : पेशे की पहली विशेषता यह है कि एक पेशेवर व्यक्ति में विशिष्ट ज्ञान एवं तकनीकी चातुर्य होना चाहिए । प्रबन्ध एक विशिष्ट ज्ञान एवं निपुणता है । जिसके अपने प्रयोगों पर आधारित सिद्धान्त एवं नियम है , जिन्हें व्यावहारिक प्रयोग में लाने के लिए विशेष चातुर्य ( Competence ) की जरूरत पड़ती है । इस विशेषता के आधार पर प्रबन्ध को पेशा माना जा सकता है ।
( 2 ) प्रशिक्षण एवं अनुभव प्राप्त करने की औपचारिक व्यवस्था ( Formalised Methods of Acquiring Training and Experience ) प्रबन्ध के विशिष्ट ज्ञान प्राप्ति के लिए शिक्षण एवं प्रशिक्षण की व्यवस्था आज अनेक संस्थाओं द्वारा उपलब्ध करा दी गई है । भिन्न – भिन्न विश्वविद्यालयों एवं प्रशिक्षण केन्द्रों में प्रबन्ध के सिद्धान्तों को निपुणता के साथ सिखलाया जा रहा है । आजकल अधिकतर प्रबन्धक या तो इन प्रशिक्षण केन्द्रों में प्रबन्ध की शिक्षा ग्रहण करके इस पेशे में प्रवेश लेते है अथवा प्रबन्ध साहित्य को पढ़कर , प्रबन्ध गोष्ठियों में हिस्सा लेकर व प्रबन्ध पाठ्यक्रम संबंधी कार्यक्रम जो कम्पनी या विश्वविद्यालय द्वारा संचालित किए गए हों में हिस्सा लेकर यह ज्ञान प्राप्त करते हैं । व्यावसायिक संस्थायें भी उन्हीं लोगों का प्रबन्धक के रूप में चुनाव करती है जो प्रशिक्षित एवं अनुभवी है । यद्यपि यह सही है कि अभी भी अनेक व्यक्ति प्रबन्धकीय योग्यता के इस औपचारिक प्रशिक्षण के बिना ही इस पद पर कार्यरत् हैं , लेकिन इन प्रबन्धकों की प्रबन्धकीय क्षमता को भी कम करके नहीं आंका जा सकता , क्योंकि इस पद पर पहुंचने के लिए उन्होंने अनेक संस्थाओं में विभिन्न छोटे बड़े पदों पर काम करके अनुभव प्राप्त किया होता है । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि दोनों प्रकार के प्रबन्धकों में लगभग एक – सी योग्यता होती है । अतः पेशे को इस विशेषता के आधार पर प्रबन्ध को पेशा माना जा सकता है ।
( 3 ) प्रतिनिधि पेशेवर संघ का होना ( Establishment of Representative Professional Association ) : पेशे की तीसरी विशेषता के रूप में इसके लिए एक प्रतिनिधि संघ का होना आवश्यक है , जिसके निम्नलिखित मुख्य कार्य होते हैं :
- ( i ) अपने सदस्यों के व्यवहार को नियन्त्रित करना ( To regulate the behaviour of its Members )
- ( ii ) पेशे की विभिन्न क्रियाओं का मार्ग दर्शन करने के लिए आचार संहिता तैयार करना ( To create a code of conduct for guiding the activities of the Profession ) ;
- ( iii ) अपने सदस्यों की छवि को एक पेशेवर के रूप में बनाना एवं विकास करना ( To build up and promote the image of its members as a professional ) ;
- ( iv ) अपने सदस्यों की न्यूनतम योग्यता निर्धारित करना ( To prescribe minimum qualifications of its members ) ; तथा
- ( v ) पेशे में प्रवेश को नियमित करना ( To regulate entry to Profession )
( 4 ) आचार संहिता ( Code of Conduct ) : एक पेशे के सदस्य निर्धारित आचार संहिता का पालन करने के लिए बाध्य होते हैं । आचार संहिता के अन्तर्गत पेशे से संबंधित नियम ( Rules ) ; ईमानदारी ( Honesty ) , सत्यनिष्ठा ( Integrity ) एवं नैतिकता ( Morality ) के पैमाने ( Norms ) को सम्मिलित किया जाता है । पहले से स्वीकृत पेशों जैसे कानून , चिकित्सा , लेखाशास्त्र आदि के लिए आचार संहिता निश्चित कर दी गई है लेकिन प्रबन्ध के संबंध में इस तरह की कोई समान आचार संहिता निश्चित नहीं की गई है और न ही प्रबन्धकीय कार्यों में प्रवेश के लिए किसी लाइसैन्स की आवश्यकता है । इन तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रवन्ध पूर्ण रूप में एक पेशा नहीं है । प्रबन्ध के संबंध में जो आचार संहिता विकसित हो रही है । उसमें मुख्यत : संस्था के गोपनीय रहस्यों को गुप्त रखना , संस्था की आन्तरिक जानकारी को अपने हित के लिए उपयोग न करना , संस्था के उपलब्ध साधनों का संस्था के दीर्घकालीन कल्याण के लिए उपयोग करना आदि को सम्मिलित किया जा रहा है ।
( 5 ) आर्थिक स्वार्थ के स्थान पर सेवा भावना को प्राथमिकता ( Priority of Service Over Economic Consideration ) : अन्य धन्धों एवं व्यापार की भान्ति ही पेशा करना भी जीवित रहने के लिए धन अर्जित करने का एक साधन है , जिसमें विशेष ज्ञान के आधार पर उचित पारिश्रमिक लेकर समाज की सेवा की जाती है । यही कारण है कि पेशेवर लोगों को समाज में सम्मान प्राप्त होता है । उदाहरण के लिए , एक डॉक्टर चिकित्सा के पेशे से अपनी आजीविका चलाता है लेकिन समाज सेवा उसका मुख्य उद्देश्य होता है । यद्यपि प्रबन्ध के संबंध में इस तरह की कोई आचार – संहिता नहीं है , फिर भी प्रबन्धकों के सामाजिक दायित्व पर बहुत जोर दिया जा रहा है और उनसे यह उम्मीद की जाती है कि वे कम से कम लागतों पर अधिक से अधिक कुशलता अर्जित करके कर्मचारियों , श्रमिकों , उपभोक्ताओं , समाज और देश की सेवा करेंगे और अपने क्षणिक आर्थिक लाभ को भुलाकर संस्था के कल्याण के लिए अपनी समस्त योग्यता एवं अनुभव को दाव पर लगा देंगे । इस दृष्टिकोण से प्रबन्ध को पेशे के रूप में स्वीकार करने में अधिक संकोच नहीं होना चाहिए ।
निष्कर्ष ( Conclusion )
उपरोक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रबन्ध , पेशे की कुछ विशेषताओं को तो पूरा करता है तथा कुछ अन्य विशेषताओं का इसमें अभी पूरा विकास नहीं हुआ है । इस प्रकार भारत में अभी प्रबन्ध का पेशे के रूप में विकास अपनी शैशव अवस्था में है तथा धीमी गति से हो रहा है । प्रबन्ध के पेशे के रूप में विकास की धीमी गति का मुख्य कारण अधिकतर औद्योगिक उपक्रमों का संचालन कुछ प्रमुख औद्योगिक घरानों द्वारा किया जाना है जिससे पेशेवर प्रबन्धकों का विकास अधिक गतिशील नहीं हो सका । परन्तु फिर भी शनैः शनै : पेशेवर प्रबन्धकों की मांग बढ़ रही है । सारांश के रूप में कहा जा सकता है कि भारत में प्रबन्ध का पेशे के रूप में विकास हो रहा है । जैसे – जैसे विकास की गति में तेजी आयेगी , वैसे – वैसे प्रबन्ध को पेशे के रूप में स्वीकृति मिलती रहेगी ।
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