प्रबंधन का महत्व
importance of management in hindi – प्राचीन काल में व्यवसाय छोटे पैमाने पर किया जाता था तथा प्रबन्ध का कोई विशेष महत्व नहीं था । अब बड़े पैमाने पर व्यवसाय होने लगा है , परिणामस्वरूप अनेक जटिलताएँ सामने आने लगी हैं । इन जटिलताओं के समाधान के रूप में प्रबन्ध की आवश्यकता महसूस होने लगी है ।
आज प्रबन्ध की पहचान उस कला के रूप में स्थापित हो चुकी है जिसके द्वारा कम से कम प्रयासों द्वारा • अधिकतम खुशहाली प्राप्त की जा सकती है । आधुनिक प्रबन्ध विशेषज्ञ ड्रकर ( Drucker ) के अनुसार , ” प्रबन्ध प्रत्येक व्यवसाय का गतिशील एवं जीवनदायक तत्त्व है । इसके अभाव में उत्पादन के साधन केवल साधन मात्र ही रह जाते हैं , कभी उत्पादक नहीं वन पाते । ( Management is a dynamic and life – giving element of every business . In its absence the means of production remain merely the means and can never be the producers ) importance of management in hindi
– Drucker ) टेरी ( Terry ) के शब्दों में , ” कोई भी संस्था बिना प्रभावी प्रबन्ध के अधिक समय तक सफल नहीं हो सकती । बहुत कुछ सीमा तक अनेक आर्थिक , सामाजिक और राजनैतिक लक्ष्यों की प्राप्ति योग्य प्रबन्धकों पर निर्भर करती है । ” ( No organisation can be successful for a long time without effective management . To a large extent the achievement of social , economic and political objectives depends on able managers . Terry ) इस प्रकार स्पष्ट होता है कि न केवल व्यावसायिक क्षेत्र में बल्कि गैर – व्यावसायिक क्षेत्रों में भी प्रबन्ध का महत्वपूर्ण स्थान है । संक्षेप में , इसी संदर्भ में कहा जाता है कि ” यदि किसी क्रिया में से प्रबन्ध को घटा दिया जाए तो शेष कुछ नहीं बचता ” ( Any thing minus management is nothing ) । संक्षेप में , प्रबन्ध का महत्व निम्नलिखित तत्त्वों से स्पष्ट होता है : importance of management in hindi
Importance of Management types in hindi
( 1 ) पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करना ( Achieving Pre – determined Objectives ) :
( प्रत्येक संस्था स्थापना कुछ न कुछ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए की जाती है । प्रबन्ध ही एक ऐसा माध्यम अथवा शक्ति है जो इन उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक हो सकता है । प्रबन्धक अपने विशेष ज्ञान व चातुर्य के आधार पर भावी घटनाओं का अनुमान लगाता है , योजनाएं बनाता है , संगठन का निर्माण करता है , कार्यभार सौंपता है , आवश्यक अधिकार प्रदान करता है , कर्मचारियों का निर्देशन करता है , उन पर नियन्त्रण रखता है , कर्मचारियों को अभिप्रेरित करता है , तथा प्राप्त परिणामों का मूल्यांकन करके विचलनों ( Deviations ) का पता लगाता है और अन्त में सुधारात्मक कार्यवाही ( Corrective Action ) करके एक असम्भव लगने वाले कार्य को सरल बना देता है ।
( 2 ) उत्पादन के साधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करना ( Ensuring Maximum Utilisation of Resources of Production )
प्रबन्ध एक ऐसी शक्ति है जो उत्पादन के विभिन्न साधनों में प्रभावपूर्ण समन्वय स्थापित करके उनका अनुकूलतम उपयोग करती है । हरबर्ट एन ० बेसन के अनुसार , “ प्रत्येक बड़े उपक्रम में पूरी गाड़ी भर कर सोना दिया होता है । इसे साधनों का सदुपयोग करके एवं अपव्ययों को रोक कर प्राप्त किया जा सकता है । ( In every big enterprise a train – load of gold is provided . It can be achieved by making a better use of resources and putting an end to useless or meaningless expenses . Herbert N. Bayson ) अर्थात् संस्था में उपलब्ध सभी साधनों को सोने के बराबर माना गया है लेकिन उसे प्राप्त करने के लिए ( अथवा उपलब्ध साधनों से लाभ कमाने के लिए उनका ठीक ढंग से उपयोग किया जाना जरूरी है । अतः स्पष्ट है कि सीमित साधनों का कुशलतम उपयोग ही व्यावसायिक सफलता की कुंजी है और इस तथ्य को प्रबन्ध द्वारा वास्तविकता में बदला जा सकता है । importance of management in hindi
( 3 ) प्रतिस्पर्धा पर विजय प्राप्त करना ( Overcoming Competition )
आज व्यवसाय का आकार स्थानीय न रहकर राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय रूप धारण कर चुका है । जैसे – जैसे व्यवसाय का आकार एवं क्षेत्र बढ़ता जा रहा है वैसे – वैसे प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि होती जा रही है । आज के निर्माता को न केवल स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी उसे तीव्र प्रतियोगिता का सामना करना पड़ रहा है । ऐसी स्थिति में केवल यही संस्था बाजार में टिक सकती है जो अपने ग्राहकों को कम से कम मूल्य पर , अच्छी से अच्छी क्वालिटी का माल उपलब्ध करा सके एक कुशल प्रबन्धक ही अपनी कुशलता एवं चातुर्य से इस कथनी को वास्तविकता में परिवर्तित करके किसी संस्था की साख को बचा सकता है ।
( 4 ) बदलते वातावरण के साथ समन्वय सुनिश्चित करना ( Ensuring Integration with Changing Environment )
प्रबन्ध का महत्व केवल संस्था के अन्दर ही विभिन्न कार्य करने तक सीमित नहीं है बल्कि इसको बाहरी वातावरण के साथ भी समझौता करके चलना पड़ता है । एक ओर तकनीकी विशेषज्ञ नई – नई उत्पादन विधियों का विकास कर रहे हैं तो दूसरी और नई – नई प्रगतिशील संस्थाएं आधुनिक विपणन पद्धतियों को लागू करने में व्यस्त हैं । आज ग्राहक भी उत्पादित वस्तुओं को सहज में ही स्वीकार नहीं करता क्योंकि उनके जीवन स्तर में बढ़ोतरी के साथ – साथ उनमें जागृति आ गई है तथा उनकी रुचि में भी परिवर्तन होते रहते हैं । इस तरह के दिन – प्रतिदिन बदलते वातावरण के साथ समन्वय का कार्य एक कुशल प्रबन्धक ही कर सकता है । कुशल एवं प्रभावशाली प्रबन्ध व्यवस्था को लागू करके नई तथा प्रचलित कार्य विधियों एवं पद्धतियों में समन्वय स्थापित करके संस्था की साख को बचाया जा सकता है ।
( 5 ) बड़े पैमाने के व्यवसाय का कुशल संचालन सुनिश्चित करना ( Ensuring Smooth Running of Large Scale Business )
बड़े पैमाने पर उत्पादन के लाभों को देखते हुए आज इसे प्राथमिकता दी जाने लगी है । जब उत्पादन बड़े पैमाने पर होगा तो उत्पादन के साधनों ( Men . Money , Material , Machine , etc ) की भी प्रचुर मात्रा में आवश्यकता होगी । इसके अतिरिक्त व्यवसाय को अनेक वैधानिक औपचारिकताओं का भी सामना करना पड़ेगा । इन सभी कार्यों को कुशलतापूर्वक व नियन्त्रित तरीके से करने के लिए कुशल प्रबन्धक का होना आवश्यक है । अतः कुशल प्रबन्धक के अभाव में बड़े पैमाने पर उत्पादन का सपना साकार नहीं हो सकता । importance of management in hindi
(6 ) उत्तम संगठन ढांचा तैयार करना ( Maintaining the Sound Organisational Structure )
किसी भी संस्था की सफलता के लिए एक उचित एवं स्पष्ट संगठन ढांचे की आवश्यकता होती है । उत्तम संगठन ढांचे का अभिप्राय अधिकारियों तथा उनके अधीन कर्मचारियों के मध्य संबंधों को स्पष्ट करने से है अर्थात् एक अधिकारी के साथ कौन – कौन व्यक्ति काम करेंगे और उनके क्या – क्या अधिकार एवं दायित्व हैं । इसके फलस्वरूप संगठन में दल भावना ( Team Spirit ) का विकास होगा तथा संगठन का वातावरण साफ – सुथरा हो जायेगा । सभी अधिकारी एवं अधीनस्थ बिना किसी मानसिक तनाव के काम करेंगे । एक उत्तम संगठन ढांचे का निर्माण प्रबन्धक द्वारा ही किया जा सकता है ।
( 7 ) श्रमिकों तथा मालिकों में अच्छे संबंध स्थापित करना ( Establishing Good Labour – Owner Relationship )
उत्पादन के सभी साधनों में से दो साधन सर्वोपरि है- श्रम तथा पूंजी । स्वामी व्यवसाय में पूंजी लगाते हैं तथा लक्ष्यों को निर्धारित करते हैं , श्रमिक निर्धारित लक्ष्यों को वास्तविकता में बदलते हैं । अतः दोनों में मधुर संबंध का होना अतिआवश्यक है । एक समय था जब श्रमिक संगठित नहीं थे और उद्योगपतियों की यह मान्यता थी कि श्रमिक वर्ग का जितना शोषण किया जाए उतना ही अच्छा होगा । लेकिन आज जबकि श्रमिक संगठित हो गये हैं , वे मालिकों पर अपनी मांगों को माने जाने के लिए दबाव डालने की स्थिति में हैं । उद्योगपतियों को भी श्रमिकों के महत्व का अहसास होने लगा है । उन्हें यह स्पष्ट हो गया है कि श्रमिकों की कार्यकुशलता के अभाव में अधिक लाभ की आशा नहीं की जा सकती । श्रमिकों की कुशलता तभी बढ़ सकती है जब उनकी समस्याओं का प्रभावपूर्ण ढंग से समाधान हो । यह कार्य केवल प्रबन्ध द्वारा ही सम्भव है । एक कुशल प्रबन्धक अपने ज्ञान व अनुभव के आधार पर श्रमिकों की भावनाओं का अनुमान लगाकर उनको समय पर पूरा करने का प्रयास करता है । प्रबन्धक कर्मचारियों को अधिक कार्यकुशल बनाने के लिए उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था करता है , प्रबन्ध में भागीदारी के अवसर प्रदान करता है , लाभों में हिस्सा देने संबंधी व्यवस्था लागू करता है , उनकी व्यक्तिगत • पहचान स्थापित करता है एवं उनकी अन्य अनेक समस्याओं को समय पर ही दूर करने का प्रयास करता है ।
( 8 ) शोध एवं अनुसंधान को महत्व देना ( Giving Importance to Research and Investigation )
एक शोध के अनुसार यह तथ्य सामने आया है कि जो कम्पनियां अथवा व्यावसायिक उपक्रम लगातार शोध एवं अनुसन्धान कार्य में रुचि ले रहे हैं उन्हीं का विकास तीव्र गति से हो रहा है । व्यावसायिक संदर्भ में शोध एवं अनुसंधान का अभिप्राय नये उत्पादों की खोज करना , नये बाजारों का पता लगाना जिससे व्यापार का क्षेत्र बढ़े , वितरण की नई विधियों की खोज करना , संदेशवाहन प्रक्रिया में आधुनिक विधियों का प्रयोग सम्भव बनाना , वित्तीय समस्याओं के समाधान के लिए नई – नई तकनीकों की खोज करना आदि से है । अतः स्पष्ट है कि व्यवसाय का तीव्र अ गति से विकास करने के लिए शोधकार्यों की आवश्यकता है और यह कार्य एक कुशल प्रबन्धक ही कर सकता है । कुशल प्रबन्धक इस महत्वपूर्ण कार्य को सम्पन्न करने के लिए ‘ शोध एवं अनुसंधान विभाग ‘ की स्थापना करते हैं । importance of management in hindi
( 9 ) सामाजिक उत्तरदायित्व की पूर्ति ( Fulfilling the Social Responsibility )
प्रत्येक व्यवसाय समाज में ही अपनी क्रियाओं का शुभारम्भ करता है , फलता – फूलता है और अन्त में विकास की चरम सीमा पर पहुंचता है । अतएव कोई भी संस्था समाज से अलग रहकर न तो कार्य कर सकती है और न ही जीवित रह सकती है । यही कारण है कि प्रत्येक उपक्रम को समाज का एक अभिन्न अंग माना जाता है । जब उपक्रम पर समाज का इतना अधिक अहसान है तो उपक्रम को भी अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को समझना चाहिए । सामाजिक उत्तरदायित्व के अन्तर्गत स्वामियों ( कम्पनी की दशा में अंशधारी ) की पूंजी की सुरक्षा एवं पर्याप्त लाभ ; कर्मचारियों को उचित वेतन एवं उचित कार्य दशाएं ; उपभोक्ताओं को सही समय पर अच्छी क्वालिटी की वस्तुएं उचित मूल्य पर उपलब्ध कराना ; समाज के लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करना एवं उनके जीवन स्तर को उन्नत करने के प्रयास करना आदि तथ्यों को सम्मिलित किया जाता है । एक उपक्रम ये सभी अपेक्षाएं कुशल प्रबन्ध व्यवस्था के माध्यम से ही संतुष्ट कर सकता है । अत : व्यवसाय के सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा करने में प्रबन्ध का विशेष महत्व है ।
( 10 ) आय में वृद्धि का लक्ष्य पूरा करना ( Aiming at Increased Profits )
किसी भी संगठन के लाभों में वृद्धि करने का मूल मन्त्र है – ‘ विक्रय में वृद्धि अथवा लागतों में कमी ‘ ( Either increase the sales revenue or reduce costs ) । विक्रय में वृद्धि कुछ सीमा तक संगठन के नियन्त्रण से बाहर कही जा सकती है , लेकिन लागतों में कमी करना पूरी तरह से संगठन का आन्तरिक मामला है और इन्हें कम किया जा सकता है । अच्छी क्वालिटी वाला कच्चा माल , आधुनिक मशीनें , प्रशिक्षित कर्मचारियों आदि की सहायता से लागतों में कमी की जा सकती है । प्रबन्ध द्वारा ही लागतों में कमी करके संस्था की आय को बढ़ाया जा सकता है और भविष्य में अधिक विकास की उम्मीद की जा सकती है ।
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