कंपनी के प्रकार
कंपनी अधिनियम 2013 के अनुसार रजिस्टर्ड कंपनी निम्न प्रकार के होते है, और इनको अलग – अलग वर्गीकृत किया जा सकता है। कंपनी को मुख्य रूप से सयुंक्त पूँजी के रूप में विभाजित किया गया है, आगे पढ़े।
Types of company in hindi
सयुंक्त पूँजी कंपनी
- असीमित कंपनी (Unlimited company)
- गारंटी द्वारा सीमित कंपनी (Company Limited by Gurantee)
- अंशो द्वारा सिमित कंपनी (Company Limited by shares)
- निजी कंपनी (Private Company)
- सार्वजानिक कंपनी (Public Company)
- एक व्यक्ति कंपनी (One person company)
असीमित कंपनी (Unlimited company) क्या है ?
असीमित कंपनी एक ऐसी कंपनी होती है, जिसके सदस्यों के दायित्व की कोई सीमा नहीं होती है। इसका मतलब ये होता है की यदि कंपनी को हानि हो जाती है और कंपनी की सम्पतियो उसके ऋणों को चुकाने के लिए पर्याप्त है तो लेनदारों के दावों को चुकाने के लिए सदस्यों को निजी सम्पतियो का प्रयोग किया जाता है। लेकिन कंपनी अधिनियम इनके निर्माण की अनुमति नहीं देता है।
गारंटी द्वारा सीमित कंपनी (Company Limited by Gurantee) क्या है ?
वो कंपनी जिसमे कंपनी के समापन की दशा में सदस्यों का दायित्व उनके द्वारा दी हुई गारंटी की राषि तक सिमित होता है। सदस्यों का दायित्व सिर्फ कंपनी के समापन की दशा में ही उत्पन्न होता है।
अंशो द्वारा सिमित कंपनी (Company Limited by shares) क्या है ?
ऐसी कंपनी में सदस्यों का दायित्व उनके पास जो अंश होता है उन अंश के अंकित मूल्य तक ही सिमित होता है। यदि किसी सदस्य ने अपने अंशो को पूर्ण राशि चूका दी है तो उससे और कोई राषि नहीं मंगाई जा सकती है। यदि किसी सदस्य के पास आंशिक चुकता अंश है तो उससे कंपनी के जीवनकाल में और समापन के समय अंशो की शेष राषि मंगाई जा सकती है। ऐसी कंपनियों को फिर से निजी, सार्वजानिक और एक व्यक्ति कंपनियों में विभक्त किया जा सकता है।
निजी कंपनी (Private Company) क्या है ?
कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2 ( 68 ) के तहत निजी कम्पनी वह कम्पनी होती है जो अपने पार्षद अन्तर्नियम द्वारा निम्न को लागू करती है।
- अंशों के हस्तान्तरण पर प्रतिबन्ध लगाती हो ;
- सदस्यों की संख्या केवल 200 ही हो और भूतपूर्व एवं वर्तमान कर्मचारियों को न शामिल करके।
- जनता को कम्पनी में प्रतिभूतियों यानी अंशों अथवा ऋणपत्रों को क्रय करने के लिए निमन्त्रण देने पर प्रतिबन्ध लगाती हो ।
- हर एक निजी कम्पनी के नाम के अन्त में ‘ प्राइवेट लिमिटेड ‘ शब्द लिखना अनिवार्य होता है।
सार्वजनिक कम्पनी ( Public Company ) क्या है ?
कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2 ( 71 ) के अनुसार एक सार्वजनिक कम्पनी से आशय ऐसी कम्पनी से होता है जो निजी कम्पनी नहीं होती है ।
difference between private company and public company in hindi
निजी कंपनी और सार्वजानिक कंपनी में अंतर
S.NO. | अंतर का आधार | निजी कंपनी (Private Company) | सार्वजानिक कंपनी (Public Company) |
1 | सदस्यों की संख्या | सदस्यों की न्यूनतम संख्या 2 और अधिकतम संख्या 200 है ( भूतपूर्व एवं वर्तमान कर्मचारियों को छोड़कर ) | सदस्यों की न्यूनतम संख्या 7 और अधिकतम संख्या पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है । |
2 | जनता को निमन्त्रण | यह जनता को अंश खरीदने के लिए निमन्त्रण नहीं दे सकती है । | यह जनता को अंश खरीदने के लिए निमन्त्रण दे सकती है |
3 | अंशों का हस्तान्तरण | इसके अंशों के हस्तान्तरण पर प्रतिबन्ध होता है। | इसके अंशों के हस्तान्तरण पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है । अन्तर्नियम बनाना अनिवार्य नहीं है |
4 | अन्तर्नियम बनाना | सभी निजी कम्पनियों के अन्तनियम बनाना अनिवार्य है । | अन्तनियम बनाना अनिवार्य नहीं है , यदि अन्तर्नियम रजिस्टर्ड न कराए जाएँ तो कम्पनी अधिनियम 2013 की अनुसूची I की तालिका F के प्रावधान लागू हो जाते हैं |
5 | संचालकों की संख्या | इसमें कम से कम दो संचालक अवश्य होने चाहिए । | इसमें कम से कम तीन संचालक अवश्य होने चाहिए । |
6 | वैधानिक सभा | इसे वैधानिक सभा करने की जरूरत नहीं होती । | इसे व्यवसाय प्रारम्भ करने के प्रमाण – पत्र मिलने के 6 महीने के अन्दर वैधानिक सभा करनी जरूरी है। |
7 | ‘ सीमित ‘ शब्द का प्रयोग | इसके नाम के अन्त में केवल ‘ प्राइवेट लिमिटेड ‘ शब्दों का प्रयोग करनाप्रयोग किया जाना अनिवार्य है । | इसके नाम के अन्त में केवल ‘ लिमिटेड ‘ शब्द का प्रयोग किया जाता। |
एक व्यक्ति कम्पनी ( One Person Company or OPC ) क्या है ?
Meaning (अर्थ) – कम्पनी अधिनियम 2013 के अन्तर्गत सार्वजनिक ( Public ) तथा प्राईवेट ( Private ) लिमिटेड कम्पनी के अतिरिक्त ‘ एक व्यक्ति कम्पनी ‘ ( One Person Company or OPC ) का निर्माण भी किया जा सकता है । OPC का अर्थ है एक प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी होता है जिसमें केवल एक व्यक्ति ही सदस्य होगा [ धारा 2 ( 62 ) ] के अनुसार OPC पर निम्नलिखित नियम लागू होते हैं :-
- सदस्य- केवल एक प्राकृतिक व्यक्ति ही जो भारत का नागरिक एवं निवासी ( Resident ) * हो OPC का सदस्य हो सकता है ।
- एक व्यक्ति केवल एक ही OPC का निमार्ण कर सकता है ।
- इसकी चुकता अंश पूँजी 50 लाख ₹ से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- इसकी तीन वर्षों की वार्षिक औसत बिक्री 2 करोड़ ₹ से अधिक नहीं होनी चाहिए ।
- उद्देश्य : इसका निर्माण दान कार्यों के लिए भी किया जा सकता है । निवासी से आशय ऐसे व्यक्ति से है जो पिछले तुरन्त के एक कैलेन्डर वर्ष में कम से कम 182 दिन भारत में रहा हो ।
- परिवर्तन : एक OPC अपने समामेलन के 2 वर्ष तक अपने आप को सार्वजनिक अथवा प्राईवेट कम्पनी में परिवर्तित नहीं कर सकती है । और ऐसा परिवर्तन अनिवार्य होगा यदि सम्बन्धित अवधि में OPC की पूँजी 50 लाख ₹ से अधिक हो जाए अथवा इसकी औसत वार्षिक बिक्री ( Turnover ) 2 करोड़ ₹ से अधिक हो जाए ।
एक व्यक्ति कंपनी के लाभ
- OPC को अपने वित्तीय विवरणों के अन्तर्गत रोकड़ प्रवाह विवरण तैयार करना आवश्यक नहीं है ।
- वार्षिक साधारण सभा बुलाने , साधारण सभा के लिए नोटिस भेजने , सभाओं के लिए कार्यवाहक संख्या ( Quorum ) , प्रोक्सी आदि से सम्बन्धित प्रावधान OPC पर लागू नहीं होंगे ।
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